यंत्र का प्रयोग

तंत्र साधना एक रहस्यमयी विध्या है मुख्य रूप से तंत्र एक हिन्दू धर्म की परम्परा हीं है। वर्तमान मे ये तंत्र ज्ञान विलुप्तता को प्राप्त हो रहा है ! इसका मुख्य कारण ये है की कुछ मंद बुद्धि कपटी लोग छोटी मोटी साधना का ढोंग करके ठग रहे है लोगो को इस कारण जनसाधारण लोगो का विश्वास नहीं रहा तांत्रिक का ताना बाना बुन कर लोगो का शोषण भी होने लगा है ! बस यही कारण है की लोग तंत्र साधना से दूर रहते है !

हमारे भारत राष्ट्र के अनुसार चार (४) युग होते हैं, जिनमें से अभी अंतिम युग कलियुग का समय चल रहा है। उदाहरणः

  1. सत्ययुग
  2. त्रेतायुग
  3. द्वापर
  4. कलियुग

विज्ञान तो आपके कलियुग में आया है यानी कि दुनिया में इससे पहले तंत्र साधना ही तो थी। अधिकतर लोग अघोर साधना व तंत्र साधना को समान समझते हैं, लेकिन दोनों में अंतर होता है। तंत्र साधना में मुख्य रूप से तंत्र मंत्र और यंत्र का प्रयोग होता है और इन तीनों में तंत्र सबसे पहले आता है। तंत्र एक ऐसी रहस्यमयी विद्या है जिसका प्रचलन हिंदुओं के अलावा जैन और बौद्ध धर्म में भी है। तंत्र मुख्य रूप से दो तरह का होता है वाम तंत्र और दूसरा सौम्य तंत्र। वाम तंत्र में पंच मकार – मध, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन साधना में उपयोग लाए जाते हैं। जबकि सौम्य तंत्र में सामान्य पूजन पाठ व अनुष्ठान किए जाते हैं। तंत्र एक रहस्यमयी विधा हैं। इसके माध्यम से व्यक्ति अपनी आत्मशक्ति का विकास करके कई तरह की शक्तियों से संपन्न हो सकता है। यही तंत्र का उद्देश्य हैं। इसी तरह तंत्र से ही सम्मोहन, त्राटक, त्रिकाल, इंद्रजाल, परा, अपरा और प्राण विधा का जन्म हुआ है।

तंत्र से वशीकरण, मोहन, विदेश्वण, उच्चाटन, मारण और स्तम्भन मुख्यरूप से ये 6 क्रियाएं की जाती हैं जिनका अर्थ वश में करना, सम्मोहित करना, दो अति प्रेम करने वालों के बीच गलतफहमी पैदा करना, किसी के मन को चंचल करना, किसी को मारना, मन्त्रों के द्वारा कई घातक वस्तुओं से बचाव करना।

तंत्र का गुरु महादेव को माना जाता है। उसके बाद भगवान दत्तात्रेय और बाद में सिद्ध योगी, नाथ व शाक्त परम्परा का प्रचलन रहा है। दत्तात्रेय के अलावा नारद, पिप्पलाद, परशुराम, सनकादि ऋषि आदि तंत्र को ही मानते थे।

तंत्र के माध्यम से ही प्राचीनकाल में घातक किस्म के हथियार बनाए जाते थे, जैसे पाशुपतास्त्र, नागपाश, ब्रह्मास्त्र आदि। जिसमें यंत्रों के स्थान पर मानव अंतराल में रहने वाली विधुत शक्ति को कुछ ऐसी विशेषता संपन्न बनाया जाता है जिससे प्रकृति से सूक्षम परमाणु उसी स्तिथि में परिणित हो जाते हैं।

मन्त्र मुख्य रूप से तीन तरह के होते हैं वैदिक मंत्र, तांत्रिक मंत्र और शाबर मंत्र। तंत्र में सबसे अधिक बीज मंत्रों का उपयोग किया जाता है। जैसे महालक्ष्मी के आशीर्वाद के लिए श्रीं बोला जाता है। मान्यता है कि इन बीज मन्त्रों को बोलने से शरीर में एक विशेष तरंग पैदा होती है जो इस मन्त्र से जुडी चीज़ों को आपकी और आकर्षित करती है।

तंत्र साधना में देवी काली, अष्ट भैरवी, नौ दुर्गा, दस महाविधा, 64 योगिनी आदि की साधना की जाती है। इसी तरह देवताओं में भैरव और शिव की साधना की जाती है। इसके अलावा यक्ष, पिशाच, गंधर्व, अप्सरा जैसे करीबी लोक के निवासियों की भी साधना की जाती है ताकि काम जल्दी पूरा हो।

तंत्र साधना एक प्रकार की आध्यात्मिक प्रथा है जो भारत में विकसित हुई थी। यह एक व्यापक शब्द है जो कई अलग-अलग प्रथाओं और सिद्धांतों को संदर्भित करता है, लेकिन इसका सामान्य उद्देश्य व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने में मदद करना है। तंत्र साधना का मूल सिद्धांत यह है कि भौतिक ब्रह्मांड और आध्यात्मिक ब्रह्मांड एक ही हैं। तंत्र साधक इस एकता को अनुभव करने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करते हैं,

एक प्रश्न बहुत से लोगो के मानस पटल पर उत्पन्न होता है की

क्याऽऽ तंत्र साधना हर कोई व्यक्ति कर सकता है ?

उत्तर :- तंत्र साधना करना और उसके फल प्राप्त होना , यह दो अलग बात है। साधना करना तो प्रत्येक व्यक्ति की इच्छाशक्ति पर निर्भर है, जो करना चाहे कर ले। लेकिन फल प्राप्ति में बहुत से अव्यय होते है। साधना की सफलता केवल इच्छाशक्ति पर निर्भर नहीं है। इसमें सर्वप्रथम प्रारब्ध होने चाहिये साधना करने के लिए। तंत्र शास्त्रों में कहा जाता है कि जिसने पूर्व जन्मों में साधना के लिए पुण्य अर्जित किये, उन्हें ही आगामी जीवन में साधना के मार्ग मिलते है। यह मार्ग है गुरु का मिलना, उचित दीक्षा मिलना, साधना के लिए उपयुक्त समय-साधन-संस्कार मिलना।

तंत्र बहुत ही विस्तृत प्रणाली है। इसमें किसी भी एक अव्यय को आप नहीं हटा सकते। जैसे किसी एक विशेष जड़ी के इंतज़ार में ही किसी साधक को वर्षों इंतज़ार करना पड़ सकता है, उसके बिना साधना संभव नहीं, उसी प्रकार बाकी सभी अव्यय भी उतने ही जरूरी है, चाहे मुहूर्त हो या गुरु।

गुरु भी दीक्षा देने से पहले आपके प्रारब्ध जांचता है, सामुद्रिक अथवा ज्योतिष अथवा तांत्रिक मार्ग से। उसी अनुसार आपको साधना मार्ग में दीक्षित करता है। कुछ साधनाओं के इक्छुक लोगो को दीक्षा के उपरांत केवल तंत्र का ज्ञान दिया जाता है, साधना नहीं, इसका कारण है ज्ञान द्वारा वो अव्यय बनाना जिससे आगामी जीवन में साधना के मार्ग खुले। कुछ साधक पूर्व जन्म से ही पुण्य लाते है, उन्हें सीधा ही साधना में लगा दिया जाता है। यह सब प्रारब्ध से ही मिलता है।

मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक तरह की उलझनों में उलझा रहता है, कभी परिवार की दिक्कतें, तो कभी गृहस्थ का सुख, कभी मान सम्मान और कभी धनसम्पदा, न जाने कितनी अभिलाषाएं हैं, न जाने कितनी आकांक्षाएं हैं जो जीवन भर आदमी का पीछा करती हैं। आदमी की सारी आकांक्षाएं वो जीवन की हों या जीवन के बाद मोक्ष की, अगर किसी तरह पूरी हो सकती हैं तो उसका एक मात्र रास्ता है दस महाविद्याएं।

प्रकृति की सभी शक्तियों में सारे ब्रह्मांड के मूल में ये दस महाविद्या ही हैं। ये दस महाविद्या है जो प्रकृति के कण कण में समाहित हैं और इनकी साधना से मनुष्य इहलोक ही नहीं परलोक भी सुधार सकता है। दस का सबसे ज्यादा महत्व है। संसार में दस दिशाएं स्पष्ट हैं ही, इसी तरह 1 से 10 तक के बिना अंकों की गणना संभव नहीं है।

ये दसों महाविद्याएं आदि शक्ति माता पार्वती की ही रूप मानी जाती हैं।

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